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This book deals with the three kinds of negotiable instruments recognised by the Indian Negotiable Instruments Act, 1881, viz., promissory note, bill of exchange, and cheque. The various provisions of the Act have been supplemented by a study of the principles established through cases. Some new sections were inserted in relation to the liability for dishonour of cheques in the amendment of the Negotiable Instruments Act in 2002, and a few other amendments owing to developments in the electronic field have been included.
पराक्राम्य लिखित का यह षष्ठम् संस्करण पूर्णतः नए कलेवर व नवीनतम सामग्री के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत है। इस अधिनियम की उपयोगयिता इस बात से साबित होती है की आज केवल चैक के अनादर से उत्पन्न आपराधिक दायित्व के बाद न्यायालय में बड़ी मात्रा में आते हैं। भारतीय रेज़ेर्व बैंक द्वारा भी समय-समय पर नए दिशा-निर्देश दिये जाते रहे हैं, जैसे-चैक, पे-ऑर्डर, डिमांड ड्राफ्ट की मियाद घटाकर छह माह के स्थान पर तीन माह कर दी गयी है। विद्वान लेखक ने प्रत्येक धारा की विस्तृत व्याख्या नवीन न्यायिक निर्णयों को सम्मलित करते हुए की है, साथ में इस अधिनियम से जुड़े परिवर्तनों को भी शामिल किया है। पुस्तक से पाठकवर्ग इस अधिनियम से जुड़ी विस्तृत जानकारी तो प्राप्त करेंगे ही, साथ ही चैक आदि से जुड़ी कार्य विधियों से भी परिचित हो सकेंगे।
पुस्तक में 'टेबिल ऑफ कसेज' यानि-वाद सूची को शामिल करते हुए पक्षकारों के नाम अंग्रेज़ी में दिये गए हैं ताकि समझने में सहजता हो।
हमें यकीन है की ये संस्करण न केवल अधिवक्ताओं वरन् विधार्थीयों और बैंकिंग कार्य से जुड़े लोगों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगा।
1. पराक्राम्य लिखित
परिभाषा
2. धारक तथा सम्यक अनुक्रम धारक
3. प्रष्ठांकान तथा दायित्व
4. उपस्थापन
5. दायित्व से उन्मोचन
6. शेष उपबंध
7. क्रॉस चैक
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